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ज्ञान न अज्ञान, न सुख न दुःख || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2014)

2019-11-24 1 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />९ मार्च २०१४<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />अष्टावक्र गीता‎ (अध्याय १८ श्लोक १०)<br />न विक्षेपो न चैकाग्र्यं नातिबोधो न मूढता।<br />न सुखं न च वा दुःखं उपशान्तस्य योगिनः॥<br /><br />अर्थ:<br />अपने स्वरुप में स्थित होकर शांत हुए तत्त्व ज्ञानी के लिए न विक्षेप है और न एकाग्रता, न ज्ञान है और न अज्ञान, न सुख है और न दुःख।<br /><br />प्रसंग:<br />मन प्रिये पर क्यों एकाग्र हो जाता है?<br />संस्कारित मन और वृतियां में झगड़े क्यों होते है?<br />ध्यान आवश्यक है या एकाग्रता?<br />न ज्ञान न अज्ञान, न सुख न दुःख से योग पुरुष विचलित नहीं होता है ऐसा क्यों कह रहे अष्टावक्र?

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